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एकाग्रता: सफलता की कुंजी

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किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए एक ही चीज पर ध्यान केंद्रित करना ही एकाग्रता है। एकाग्रता निरंतर प्रयास से आती है। सतर्कता और मन का केंद्रित होना ध्यान के ही परिणाम हैं। जब ध्यान होता है तभी एकाग्रता सधती है और जब एकाग्रता होती है तभी ध्यान संभव है। ये दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं।एकाग्रता ध्यान का एक प्रतिफल है। परन्तु ध्यान में एकाग्रता का विकेंद्रीकर्ण हो जाता है। ध्यान का अर्थ है मन को एक स्थान पर एकाग्र कर लेना। यह उचित नहीं है। वास्तव में ध्यान एकाग्रता के विपरीत है। काम करते समय एकाग्रता की आवश्यकता होती है, लेकिन ध्यान करने के लिए एकाग्रता की आवश्यकता नहीं है। सतर्कता और मन का केंद्रित होना ध्यान के ही परिणाम हैं। जीवन में एकाग्रता का बहुत महत्व है और इसे अपने जीवन में ढाल लेने पर असंभव कार्य भी संभव हो जाता है।मन की एकाग्रता हमारी सफलता के द्वार खोलती है।जिसने भी मन को साध लिया उसके लिए हर लक्ष्य आसान हो जाता है। मन की एकाग्रता सफलता के नए द्वार खोलती है।मनुष्य के मन का स्वाभाविक गुण चंचल होना है अर्थात् एकाग्र नहीं होना। मन का चंचल गुण बार-बार मनुष्य को लक्ष्यों से विमुख करता रहता है। मनुष्य का मन उसको भावनाओं और कामनाओं के जाल में बांधकर तरह तरह के कार्य करवाता है। हमारा मन हमारे शरीर रूपी रथ का सारथी होता है। इसका जिस ओर मन करता है वह उधर ही इसको ले जाता है।मन का अधिक झुकाव विषयों एवं विकारों की तरफ रहता है। यही पर इसको बांधने और रोकने की जरूरत महसूस होती है। इसके लिए गीता में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं, 'हे अर्जुन यदि तुम धीर मति वाले और दृढ़ निश्चयी व्यक्ति हो तो मन की चंचलता पर काबू पाया जा सकता है और यही एकाग्रता की आवश्यकता होती है।मन को एकाग्रचित्त करना सबसे कठिन होता है।मन के दृढ़ रखने पर ही इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है और ये अभ्यास से ही संभव है। इसी प्रकार स्वामी विवेकानंद जी ने भी एकाग्रता की महत्ता को बताते हुए कहा कि अगर मुझे जीवन में एक बार फिर से शिक्षा ग्रहण करने का अवसर मेरे मन के अनुसार मिला तो तथ्यों का अध्ययन तो कदापि नहीं करूंगा। तब मैं मन की एकाग्रता और अनासक्ति की सामर्थ्य बढ़ाऊंगा। इसमें पारंगत हो जाने के पश्चात अपनी इच्छा अनुसार तत्वों का संकलन करूंगा। इस तरह उन्होंने भी मन की एकाग्रता पर जोर दिया है।महाकाव्य महाभारत के अनुसार एक दिन, पांडवों और कौरवों को तीरंदाजी की शिक्षा देने के दौरान गुरु द्रोणाचार्य ने अपने विद्यार्थियों की एकाग्रता शक्ति को परखने का फैसला किया।गुरु द्रोणाचार्य ने पेड़ की शाखा पर लकड़ी की एक चिड़िया लगा दी।वे एक– एक कर छात्र को बुलाते और उससे उस चिड़िया की आँख भेदने को कहते।छात्रों द्वारा आँख भेदते समय निशाना लगाते छात्र से गुरु द्रोणाचार्य पूछते कि आप को क्या दिखाई दे रहा है? उस समय हर छात्र ने उत्तर में किसी को पेड़ की शाखाएँ नजर आ रही थी तो किसी को पूरी चिड़िया और उसके आस – पास की चीजें लेकिन सिर्फ अर्जुन ने ही बताया कि उन्हें सिर्फ चिड़िया की आंख दिखाई दे रही है।ऐसा इसलिए हो पाया क्योंकि उसने चिड़िया की आंख (लक्ष्य) पर खुद को एकाग्र कर बाकी सभी विकर्षणों को छोड़ दिया था। यह एकाग्रता शक्ति थी जिसने उस समय के सबसे बड़े तीरंदाजों में से एक बनाया था।

दिव्यांग होते हुए भी एवरेस्ट विजेता अरुणिमा सिंह, प्रशासनिक अधिकारी इरा सिंघल ने एकाग्रता से अपने लक्ष्य को जीवन का उद्देश्य बना लिया था।छात्र जीवन से ही एकाग्रता की आदत डालना आवश्यक है। एकाग्रता एक ऐसी आदत है जो पूरे जीवन मनुष्य को सुख और कामयाबी देती है।कोई भी कार्य या लक्ष्य मुश्किल नहीं होता हैं।हर कार्य चाहे कितना भी कठिन हो, उसे एकाग्रता से सरल बनाया जा सकता हैं।जिसने भी मन को साध लिया, उसके लिए हर लक्ष्य आसान हो जाता है। मन की एकाग्रता ही आत्मा से साक्षात्कार कराकर सफलता के नए द्वार खोलती है।किसी भी क्षेत्र में सफलता को निर्धारित करने वाली सबसे महत्वपूर्ण, मूल और निर्णायक कारक एकाग्रता शक्ति होती है।जो भी किसी कार्य के प्रति एकाग्र हो जाता हैं तो उसे वह मनोयोग के साथ करता है।एकाग्रता के साथ काम करने से बहुत सारे लाभ होते हैं। मन लगाकर पढ़ने पर परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त होते हैं। किसी भी काम को एकाग्रता के साथ किया जाए तो उसमें असाधारण सफलता मिलती हैं।एकाग्रता के साथ काम करने से तनाव और बिमारी भी दूर रहते हैं क्योंकि एकाग्रता के कारण लक्ष्य को प्राप्त करने में सर्वस्य लगा रहता है उसे अपने चारों तरफ़ हो रही घटनाओं का, बदलाव का ज्ञान ही नहीं होता उसे तो केवल चिड़िया की आँख ही दिखायी देती है। अपने कार्य को पूरा करने में तन मन से लगा रहता हैं।संस्कृत के श्लोकों में भी एकाग्रता को सभी तपो में सर्वोपरि बताया गया है। एकाग्रता को प्रत्यक्ष रूप से एक मूर्तिकार द्वारा मूर्ति बनाने तथा एक चित्रकार द्वारा चित्र बनाते समय उस के मन के स्थिति से समझा जा सकता है। उनकी एकाग्रता का स्तर महसूस करने पर एहसास होगा कि वह एकाग्रता ही रही होगी जिसने उन्हें इतनी मनोयोग से अपने लक्ष्य को प्राप्त करने दिया।एकाग्रता स्मरण शक्ति को बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कड़ी है।मस्तिष्क जीवन की यादों तथा अनुभवों का गठजोड़ है और उसके आधार पर कल्पना शक्ति का प्रयोग है परन्तु एकाग्रता मन के ज्यादा नजदीक है। मन का स्वभाव है कि यह किसी एक बात पर ज्यादा समय तक रुक नहीं सकता कभी इधर तो कभी उधर भटक ही जाता है।

भले ही किसी बात को ज्यादा समय तक सोचने की इच्छा हो परन्तु मन तो अपनी तीव्रता से चलते हुए किसी एक बिंदु पर रुकता ही नहीं है। जिस बिंदु पर चिंतन करना है वहाँ मन रुकता ही नहीं तो आशा अनुरूप परिणाम पर पहुंचना असंभव हो जाता है और ऐसी स्थिति में बडा से बड़ा ज्ञानी या समझदार भी अपने काम को ढंग से नहीं कर पाएंगे और निर्णय असंतोषजनक तथा अपूर्ण होने की पूरी संभावना रहती है। इसी कारण छात्रों/ छात्राओं के लिए मन की एकाग्रता की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। इसे ऐसा भी कह सकते है कि मन की एकाग्रता का सीधा संबंध रुचि से है अरुचिकर विषयों में मन नहीं लगता, एकाग्रता नहीं रहती, इसलिए किसी भी विषय पर एकाग्रता बढ़ाने की पहली शर्त उस विषय में रुचि पैदा करना होता है।ज्यादातर छात्रों/ छात्राओं में गणित के प्रति रूचि कम होती इस विषय से बचने का प्रयास करते हैं परन्तु रुचिकर विषय को दिलचस्पी के साथ पढ़ते हैं। वास्तविकता है कि गणित किसी के लिए बहुत रुचिकर भी होता है अर्थात् संसार में कोई भी विषय नीरस नहीं है।प्रत्येक का महत्व प्रत्येक के लिए अलग अलग हो सकता है कोई किसी कार्य को करके बहुत अच्छा महसूस करता है तो दूसरा उस कार्य को करना पसन्द नहीं करता या कम पसन्द करता है ऐसा रुचि के कारण ही होता है। सामान्य तौर पर कोई नहीं चाहता कि वह दुखी हो या उसे कष्ट सहन करने पड़े या उसे किसी चीज का त्याग करना पड़े। कोई व् नहीं चाहता कि उसकी मृत्यु हो जाए वह परिजनों से दूर हो जाये क्योंकि यह सभी सामान्यतः अरुचिकर विषय हैं पर बहुतों को इसमें भी आनंद आता है। उदाहरणतः तपस्वी जो अपने शरीर को असहनीय कष्ट देते हैं गलाते है क्योंकि उनकी रुचि ईश्वर को प्राप्ति करने में है। यहाँ एकाग्रता ही है जो उन्हें यह करने की शक्ति देती है। यह एकाग्रता कैसे बना कर रख पाते हैं। पतंजलि ने भी योग साधना का सारा रहस्य एकाग्रता को बताया है। सभी प्रकार की उन्नतियों में एकाग्रता की अहम भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। मानसिक शक्तियों के विकास तथा बुद्धि को तीक्ष्ण बनाने में एकाग्रता की समग्र भूमिका है। एकाग्रता ही वह शक्ति थी जिसने संस्कृत महाकवि कालिदास को बनाया।

मन को एकाग्र करने का सबसे साधारण तरीका है कि मन को मारकर उस विषय की ओर ले जायें जो अरुचिकर हो धीरे धीरे उसने रुचि पैदा होने लगेगी। अरुचिकर विषयों के परिणामों की कल्पना करें उस से भविष्य में होने वाले फायदों के बारे में सोचें सही गलत का निर्धारण करें तभी उस विषय में रुचि पैदा हो सकती है। विषय को मनोरंजक बना कर चलना भी व्यवहारिक है। किसी भी विषय वस्तु के बारे में उदासीनता या चिन्ता का भाव एकाग्रता में बाधक बनता है।इसलिए आनन्दित हो कर किये गये सभी साधना अधिकतम कौशल शक्ति की अभिव्यक्ति होती है। कभी कभी लंबे समय तक किसी एक विषय पर ध्यान देने से मन थकने लगता है यहां पर यह समझना आवश्यक है कि मन थकने से क्या अभिप्राय है।वास्तविकता में शरीर या मन जीवन भर किसी भी विषय में लगने से थकता नहीं है परन्तु अगर ऐसा महसूस हो रहा है तो उसका तात्पर्य है कि लगातार साधना से विरक्ति हो रही है क्योंकि उस में कोई परिवर्तन नहीं है कोई नयापन नहीं है। ऐसे समय एकाग्रता बनाये रखने के लिये या तो कुछ समय के लिए विषय परिवर्तन कर देना चाहिए या उसी साधना, विषय को थोड़ा परिवर्तित रूप देकर करने का प्रयास करना चाहिए।अगर किसी छात्रों/ छात्राओं को लगता है कि उसका मन थक रहा है. तो जिस विषय को पढ़ रहे हैं उसको कुछ समय के लिए रोक दें और दूसरा विषय पढ़ना प्रारम्भ कर दें यदि उसी विषय को पढ़ना आवश्यक हो तो पढ़ने के तरीके में थोड़ा सा परिवर्तन करके पढ़ें। जिससे मन की थकावट भी नहीं होगी, रुचि बढ़ेगी जो एकाग्रता बढ़ाने में अहम भूमिका निभाएगी। एकाग्रता भंग होने का पहला तथा सबसे महत्वपूर्ण कारण आसपास के वातावरण का अशांत होना होता है। दूसरा कारण एक समय में ही कई कार्यों को संपन्न करने की आदत का होना है।तीसरा मुख्य कारण नियमितता का अभाव तथा अवसाद का किसी भी स्तर पर पाया जाना होता है।एकाग्रता भंग करने में आज कल मोबाइल और इंटरनेट के युग में चौथा और सबसे महत्वपूर्ण कारक सोशल मीडिया का अविवेकशील प्रयोग है जिसके कारण अपर्याप्त नींद का होना है और ये सम्मानित होकर स्वास्थ्य सम्बन्धी अन्य परेशानियाँ भी पैदा करती है जो एकाग्रता लाने या बढ़ाने में बहुत ही बाधक होती हैं। ऐसे समय में एकाग्रता को बढ़ाने में ध्यान योग की अहम भूमिका होती है। क्रोध, द्वेष अहंकार जैसी प्रवर्तियाँ एकाग्रता की विरोधी हैं और उसे कम करती हैं।
जीवन के प्रत्येक चित्र में एकाग्रता के महत्व को नकारा नहीं जा सकता। प्रत्येक सफलता में एकाग्रता की अहम भूमिका होती है।

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